आपने इसे यदि न पढ़ा हो तो जरूर पढ़ लीजिए। यह मेरी ही कविता है। डैडी ने मुझे बताये बिना इसे अपने ब्लॉग पर छाप दिया था-
गर्मी की छुट्टी आई है। दीदी की मस्ती छायी है॥ पर देखो, मैं हूँ बेहाल। कट जाएंगे मेरे बाल॥ |  |
 | मम्मी कहती फँसते हैं ये। डैडी कहते ‘हँसते हैं’ ये॥ दीदी कहती ‘हैं जंजाल’। कट जाएंगे मेरे बाल॥ |
मुण्डन को है गाँव में जाना। परम्परा से बाल कटाना॥ नाऊ की कैंची बदहाल। कट जाएंगे मेरे बाल॥ |  |
 | गाँव-गीत की लहरी होगी। मौसी-मामी शहरी होंगी॥ ढोल - नगाड़े देंगे ताल। कट जाएंगे मेरे बाल॥ |
दादा – दादी, ताऊ – ताई। चाचा-चाची, बहनें – भाई॥ सभी करेंगे वहाँ धमाल। कट जाएंगे मेरे बाल |  |
 | बूआ सब आँचल फैलाए। बैठी होंगी दाएं - बाएं॥ हो जाएंगी मालामाल। कट जाएंगे मेरे बाल॥ |
कोट माई’ के दर जाएंगे। कटे बाल को धर आएंगे॥ ‘माँ’ रखती है हमें निहाल। कट जाएंगे मेरे बाल॥ |  |
 | हल्दी, चन्दन, अक्षत, दही। पूजा की थाली खिल रही॥ चमक उठेगा मेरा भाल। कट जाएंगे मेरे बाल॥ |
मम्मी रोज करें बाजार। गहने, कपड़े औ’ श्रृंगार॥ बटुआ ढीला - डैडी ‘लाल’। कट जाएंगे मेरे बाल॥ |  |
 | अब तो होगी मेरी मौज। नये खिलौनों की है फौज॥ मुण्डन होगा बड़ा कमाल। कट जाएंगे मेरे बाल॥ |
सभी अंकल्स और आण्टियों को सादर प्रणाम! भैया-दीदी को नमस्ते
-सत्यार्थ
हेलो सत्यार्थ ! क्या कर हो ?
ReplyDeleteअच्छी लगी कविता
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