जब मैंने बकइयाँ चलना सीख लिया था तब मम्मी हमेशा डरी रहती थीं कि जाने कब मैं बिस्तर पर से चलते हुए नीचे टपक पड़ूँ। जब मैने एकाध बार छलांग लगा दी तो उन्होंने बिस्तर ही फर्श पर लगवा दिया था। डैडी अपने दोस्तों को भी वही जमीन पर बैठा कर मेरी मस्त चाल का आनन्द लेते थे। जी.एस. अंकल तो मेरे दीवाने थे। देखिए...
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(सत्यार्थ)
शाबाश .. शैतानी करो और शाबाशी मांगो .. यही तो खासियत होती है बचपन की !!
ReplyDeleteहां! हम बूझ गया हूं. पूरे दिन तैतानी तरो और अपने दैदी की नात में तर दो. दनदनादन.....
ReplyDeleteबकइयाँ चलना सीख लिया -बधाई हो राजा बाबू!!
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