Sunday, August 30, 2009

जब मैंने अपने हाथ-पैर से चलना सीख लिया था।

जब मैंने बक‍इयाँ चलना सीख लिया था तब मम्मी हमेशा डरी रहती थीं कि जाने कब मैं बिस्तर पर से चलते हुए नीचे टपक पड़ूँ। जब मैने एकाध बार छलांग लगा दी तो उन्होंने बिस्तर ही फर्श पर लगवा दिया था। डैडी अपने दोस्तों को भी वही जमीन पर बैठा कर मेरी मस्त चाल का आनन्द लेते थे। जी.एस. अंकल तो मेरे दीवाने थे। देखिए...

यह ऊपर की वीडियो क्लिप देखने के लिए यहाँ चटका लगाएं।

नीचे एक और यादगार वीडियो क्लिप  यहाँ है, चटकाइए

(सत्यार्थ)

3 comments:

  1. शाबाश .. शैतानी करो और शाबाशी मांगो .. यही तो खासियत होती है बचपन की !!

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  2. हां! हम बूझ गया हूं. पूरे दिन तैतानी तरो और अपने दैदी की नात में तर दो. दनदनादन.....

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  3. बक‍इयाँ चलना सीख लिया -बधाई हो राजा बाबू!!

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‘शाबास’ कहिए, बस...