जबसे हम इलाहाबाद से वर्धा आये तबसे कोई हम लोगों से मिलने वाला आता ही नहीं था। हम और दीदी अकेले यहाँ खेला करते थे। सुबह-शाम डैडी के साथ बात-चीत हो पाती थी। लेकिन अभी दो दिनों के लिए सबकुछ बदल गया।
पिछले शनिवार और इतवार को वर्धा में बहुत चहल-पहल थी। खू्ब सारे अंकल्स और ऑंटी आये हुए थे। इन लोगों ने हम सबसे खूब बातें की, फोटुएँ खिचाईं। हम भी इनके बीच घूमते टहलते रहे। डैडी तो कई दिन पहले से ही हम लोगों से कम बात करने लगे थे। ऑफ़िस से देर कर के लौटते और घर पर भी फोन पर बात करने में लगे रहते। मम्मी भी हम लोगों को डैडी से बात करने से मना करती रहती। कहती थीं कि सेमिनार के बाद बात करना। हम इस सेमिनार का मतलब तो जानते ही नहीं थे। लेकिन ९-१० अक्तूबर को जब मेला जैसा लगा तो कुछ-कुछ समझ में आगया।
हमने डैडी से पूछा कि मुझे भी सेमिनार में ले चलोगे? डैडी कुछ जवाब देते इसके पहले ही दीदी ने बता दिया कि इस कार्यक्रम में सभी ब्लॉगर बिना बुलाये भी जा सकते हैं। अब मैं छोटा ही सही पर ब्लॉगर तो हूँ ही। मैंने जल्दी से मम्मी को कहा कि मुझे भी तैयार कर दो। नर्सरी क्लास की शनिवार को छुट्टी होती ही है इसलिए मुझे स्कूल से छुट्टी भी नहीं लेनी पड़ी।
मैने हॉल में देखा ढेर सारे लोग इकठ्ठा हो गये हैं। सामने मंच पर छः कुर्सियाँ थीं जिनपर वीसी अंकल के साथ दूसरे मेहमान बैठ गये। उनमें से कविता ऑण्टी के अलावा एक दाढ़ी वाले अंकल बीती रात मेरे घर भी आ चुके थे। मैं मम्मी के साथ ब्लॉगरों के लिए रिज़र्व कुर्सियों पर बैठ गया। डैडी ने माइक पर बोलना शुरू किया। फिर बारी-बारी से कई लोगों ने स्पीच दिया। मुझे वह सब याद नहीं रहा। मैंने तो केवल वहाँ का सीन याद कर रखा है। आप लोगों को दिखाना चाहता हूँ।
सबसे अच्छा सीन गेस्ट हाउस का था। सबलोग सुबह-शाम खुले चबूतरे पर इकठ्ठा होते और चाय-नाश्ता के बीच खुब हँसी ठिठोली करते। दूसरे दिन शाम को मम्मी-डैडी के साथ मैं भी वहाँ गया था। सबलोग मेरी चोट का हाल पूछ रहे थे। असल में दीदी के साथ सड़क पर दौड़ते हुए मैं अचानक गिर पड़ा था जिससे दोनो घुटने छिल गये थे और माथे पर गुब्बड़ निकल आया था। …तो लम्बे-लम्बे बालों वाले दादा जी ने (आलोकधन्वा) मेरे लिए बैण्ड-एड लाकर दिया और साथ में चाकलेट भी। मैं सारा दर्द भूल चुका था लेकिन सबलोग मुझे सहला कर उसी के बारे में पूछ रहे थे।
थोड़ी देर तक तो बहुत अच्छा लगा। सबने मुझे खूब प्यार किया। फोटुएँ खिचायी गयी। लेकिन उसके बाद एक-एककर सबलोग जाने लगे। टाटा सूमो आती और उन्हें बिठाकर ले जाती। डैडी सबको विदा करते इमोशनल होते जा रहे थे। मम्मी मुझे लेकर घर आ गयी। कुछ लोगों को डैडी अपनी सेण्ट्रो में ले गये। मुझे घर ही छोड़ दिया। इससे मेरा मन उदास हो गया।
अगले दिन से स्कूल था। मैं सबकुछ भूलने लगा था। लेकिन आज फिर शनिवार है। मैं घर पर ही हूँ और आप लोगों की बहुत याद आ रही है।
आप लोग वर्धा से क्यों चले गये?
(सत्यार्थ शंकर त्रिपाठी)
vaah kyaa baat hai
ReplyDeleteअरे-अरे क्या बात छोटे त्रिपाठी जी ..आपने तो वर्धा संगोष्ठी पे प्रकाशित सभी पोस्ट को पीछे छोड़ दिया है ...वैसे इस संगोष्ठी में उत्साह के मामले में आप पहले ही सभी ब्लोगर को मात दे चुके थे ..आशा है आप जिन्दगी और प्रतिभा की रेश में भी सबको मात देकर आगे निकल जायेंगे आपकी यद् तो सभी ब्लोगरों को सता रहा है आपकी दीदी को भी ढेर सारा आशीर्वाद और आपके पूरे परिवार को विजया दशमी की बधाई और शुभकामनायें ....आपका एक नन्हा मित्र जो दिल्ली में है वह भी आपसे मिलने को बेताब है अगली बार उसको लेकर वर्धा आऊंगा अभी उसके ब्लॉग से ही मित्रता कर लें आप इस लिंक पर जाकर
ReplyDeletehttp://satymewjayte.blogspot.com/
इस से अच्छा आभार प्रदर्शन नहीं हो सकता।
ReplyDeleteगाँधी जी की बकरी के साथ सत्यार्थ। वाह क्या बात है? सत्यार्थ जरा बताओ तो सही कि यह गाँधीजी के तीन बन्दरों वाली कहानी क्या है? ये गाँधीजी के साथ कैसे चिपक गए? मैंने वहाँ भी पूछा था तो अब सोचा कि तुमसे ही पूछ लूं। सत्यार्थ तुम बहुत भाग्यशाली हो जो तुम्हें ऐसे माता-पिता मिले हैं। उन्होंने हम सब का कितना ध्यान रखा। हमारे उदयपुर में भी बच्चों के लिए बहुत घूमने की जगह है, तुम पापा से कहना कि पापा हमें उदयपुर ले चलो।
ReplyDeleteबेटा जी आप लोगों के साथ 2 दिन शानदार रहे। मुझे ऑफिस के दबाव की वजह से भागना पड़ा। कम से कम एक दिन तो और आप लोगों का साथ मांगता था। अब आप मम्मी डैडी, दीदी के साथ आइए दिल्ली, घूमकर जाइए। यहां आपकी एक छोटी सी बहन भी है।
ReplyDeleteबच्चा( हम सब को ऐसे ही बुलाते हैं, फ़िर वो कोई भी उम्र का हो…:)) तुमसे मिल कर, तुमसे खेल कर हमें कितनी खुशी मिली हम ब्यां नहीं कर सकते। यहां बम्बई में भी मेरे बहुत सारे बच्चे हैं( जैसे तुम सब अपनी टीचर के बच्चे हो) लेकिन वो बच्चे तो बहुत बड़े हैं, किसी छुटकू को गोद में उठा के दुलारने की हसरत तो तुमसे मिल कर पूरी हुई, तुम जब जब कविता आंटी की गोद में जा बैठते थे, मन करता था कि तुम्हें अपनी गोद में ले लें। तुम्हारा अपने नाम के स्पेलिंग में आधा त बताना तो अभी तक मेरे कानों में गूंज रहा है। अपने बचपन के बाद अब किसी को हिंदी के स्पेलिंग बोलते देख रही थी। तुमसे हिंदी की कविताएं, पहाड़े सुनने का भी बहुत मन था लेकिन तुम्हारा टाइम तो सब अकंल आंटियों में बंटा था। अब जल्दी से बम्बई आओ, हम छुट्टी ले लेगें और तुम्हें खूब घुमायेगें। मेरे यहां तो कोई छोटा बच्चा है नहीं हम खुद तुम्हारे साथ खेलेगें और तुम्हारी दीदी से बतियायेगें जो आप को कंप्युटर चलाना सिखाती है। ढेर सारी किशि, दोनों गाल पे…।:)
ReplyDeleteवाह बंधू !
ReplyDeleteसबसे बढ़िया वर्धा रिपोर्टिंग तो यही रही ........बड़े मियाँ तो बड़े मियाँ छोटे मियाँ सुभानल्लाह!!!
हम तो आप से मिल ही नहीं पाये, हमारा नुकसान हो गया।
ReplyDeleteवाह सत्यार्थ ... मैं तो खुश हूँ ये जानकर की वहां हमारी टीम से एक नन्हा ब्लॉगर भी पहुंचा ...
ReplyDeleteरिपोर्ट तो बढ़िया लिख डाली है.....दशहरे की शुभकामनायें
चाबाश नन्हें ब्लागर । हमसे तो ज्यादा बात नहीं हुई दूर से ही देखते रहे । वैसे भी नन्हें मुन्ने डाक्टर का नाम सुनके भागते हैं :)
ReplyDeleteचाबाश बेटा ! आप सभी के साथ 2 दिन अत्यंत सार्थक रहा ।वैसे उस दिन आप जब चोट ग्रस्त हो गए थे और आपका हैंडीप्लास्ट बार-बार उखर जा रहा था, आपके दर्द से मुझे भी तकलीफ हो रही थी .....वैसे सेमीनार के बाद एक-दो दिन वर्धा मैं रुकना चाह रहा था ! मुझे ऑफिस के दबाव की वजह से भागना पड़ा। अब आप मम्मी डैडी, दीदी के साथ आइए लखनऊ, घूमकर जाइए।
ReplyDeleteअरे वहां से आने का मन किसका कर रहा था . हमें तो घर पर डांट पड़ती इसलिए आना पडा .
ReplyDeleteअरे वाह, बड़ी अच्छी पोस्ट लिखी है आपने तो. मज़ा आ गया.
ReplyDeleteविजयादशमी की अनन्त शुभकामनायें.
सत्यार्थ जी हम तो पहुँच नही पाये और आपसे दोबारा मिल नही पाये इसका हमे खेद है।
ReplyDeleteकार्यक्रम सम्बन्धित एक दो पोस्ट पढ़ी थी आज आपकी पोस्ट को पढा आपकी पोस्ट अभिव्यक्ति की सवोत्तम पोस्ट लगी। मन तो हमारा भी काफी था कि आपसे मिला जाये किन्तु हम अपने काम-धाम की शुरूवात करना था तो कार्यक्रम के कैलेन्डर से हमारा कैलेन्डर मैच ही नही किया तो हमारा आना फेल हो गया। :)
आइये आपका इलाहाबाद आपका इंतजार कर रहा है....
sabse badhiya report....
ReplyDeleteआपने कह ही रखा है कि 'शाबास' कहिए, बस...
ReplyDeleteइसीलिए
शाबास
सत्यार्थ मैं हूं
ReplyDeleteमुन्नाभाई।
पहचाना
जाना
आना जाना
तो लगा रहता है
बनता है जब बहाना
अगली बारे मिलेंगे
बे बहाना
ब्लॉगिंग का तराना
सच्चा बुना है
तुमने ताना बाना
शाबाश
कह रहा है अविनाश
मत होना उदास
जल्दी आयेंगे
आपके पास।
सच में नहीं आये
तो सपनों में अवश्य आयेंगे
वहां भी ब्लॉगिंग की
खूब सारी पोस्टें
और टिप्पणी लगायेंगे।
बहुत बढ़िया...
ReplyDeleteहाय, हम न हुए वहां...
:) अब तो मिस कर रहे हो...तस्वीरें अच्छी लगी.
ReplyDeleteचिरंजीव सत्यार्थ जी,
ReplyDeleteआपके चिट्ठे पर आपकी चिट्ठी मिली - आपकी तरह प्यारी प्यारी सी.
आपके सवाल का जवाब देने की हिम्मत हममें तो नहीं ही है रे बाबा!
आपको और आयुष्मती वागीशा को स्नेह सहित
- एक दाढ़ी वाले अंकल
‘शाबास’ :)
ReplyDeleteछोटे नबाब तो बड़े प्यारे निकले
सबसे बढ़िया.
ReplyDeleteआयेंगे फिर आयेंगे नन्हे मियाँ फिर आयेंगे हम आपसे मिलने.
बहुत अच्छी अच्छी तस्वीरें दिखाई आपने तो आपसे मीकर बहुत अच्छा लगा ....ढ़ेर सारा प्यार .
ReplyDeleteनन्ही ब्लॉगर
अनुष्का
शाबास…
ReplyDeleteप्रिय छुटकू, आपने ही तो आदेश दिया है कि "शाबास" कहिये बस… :) :)
आपके लिये समस्त आशीर्वाद तो हम आपके पापा को भिजवा चुके हैं, निश्चित ही आप तक पहुँच गये होंगे… हर्ष अंकल की तरह हमें भी व्यस्तता की वजह से जल्दी भागना पड़ा था और हम आपके पापा से ठीक से विदा न ले सके…।
बहरहाल आपकी पोस्ट मजेदार है///
यहाँ तो बैठे-बैठे सभी से मुलाकात हो गई...बढ़िया है.
ReplyDelete______________________
'पाखी की दुनिया' में पाखी की इक और ड्राइंग...
Priti sagar..That fraud lady will coordinate the blogging in wardha..who has been declared Literary writer without any creative work..who has got prepared fake icard of non existing employee..surprising
ReplyDeleteMAHATMA Gandhi Hindi University , Wardha ke blog per wahan ke teacher Ashok nath Tripathi nein 16 november ki post per ek comment kiya hai …Tripathi ji padhe likhe aadmi hain ..Wo website bhi shuddha likh lete hain..unhone shayad university ke kisi non exhisting employee ki fake id bhi nahin banwai hai..aur unhone program mein present na rahne ke karan pogram ke baare mein koi comment nahin kia..I respect his honesty ..yahan to non readable post per bhi log apne comment de dete hain...really he is honest...Unhen salaam….
ReplyDeleteहम तो यहीं हैं
ReplyDeleteयहीं हैं
यहीं हैं
हिन्दी ब्लॉगिंग के एक सेमिनार में शामिल ब्लॉगरों के हथियारों की झलक
अच्छा
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